प्रथम राजभाषा आयोग और संसदीय राजभाषा समिति कैसे बनी?

प्रथम राजभाषा आयोग और संसदीय राजभाषा समिति कैसे बनी?

🌿 राजभाषा हिंदी की ओर पहला संगठित कदम: आयोग और समिति की भूमिका

संविधान के अनुच्छेद 344(1) के अनुसार यह प्रावधान है कि संविधान के लागू होने के 5 वर्ष बाद और फिर 10 वर्ष बाद, राष्ट्रपति के आदेश से एक आयोग का गठन किया जाएगा। इस आयोग में एक अध्यक्ष और आठवीं अनुसूची की विभिन्न भाषाओं से संबंधित सदस्य होते हैं।

🕵️‍♂️ आयोग का उद्देश्य:

इस आयोग का कार्य होता है –
👉 हिंदी के उत्तरवर्ती (क्रमिक) प्रयोग को बढ़ाना,
👉 और अंग्रेज़ी के प्रयोग को सीमित (नियंत्रित) करने के विषय में राष्ट्रपति को सिफारिशें भेजना।


🏛️ प्रथम राजभाषा आयोग – 7 जून 1955

राष्ट्रपति के आदेशानुसार 7 जून 1955 को प्रथम राजभाषा आयोग का गठन किया गया।
इसके अध्यक्ष थे – श्री बाल गंगाधर खेर (तत्कालीन मुंबई प्रांत के पूर्व मुख्यमंत्री)।
इस आयोग में 20 सदस्य थे, जो देश की विभिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करते थे।

आयोग ने अपनी 76 बैठकें कीं और 1930 व्यक्तियों से साक्षात्कार लेकर, 1094 ज्ञापन/उत्तर प्राप्त किए।
इस गहन अध्ययन के बाद आयोग ने 1956 में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी।


👥 राजभाषा संसदीय समिति – 1957

अनुच्छेद 344(4) के अंतर्गत, 1957 में राजभाषा संसदीय समिति का गठन राष्ट्रपति के आदेश से किया गया।
इसमें 30 सदस्य शामिल थे – 20 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से।
पं. गोविंद वल्लभ पंत इस समिति के अध्यक्ष बनाए गए।

समिति ने आयोग की रिपोर्ट की गहन समीक्षा की और 26 बैठकों के बाद 8 फरवरी 1959 को अपनी सिफारिशें राष्ट्रपति को सौंप दीं।


📜 मुख्य सिफारिशें और निष्कर्ष:

👉 हिंदी को 1965 तक पूरी तरह से राजभाषा के रूप में लागू कर पाना व्यावहारिक नहीं है।
👉 इसलिए अंग्रेज़ी का प्रयोग 1965 के बाद भी जारी रहना चाहिए।
👉 हिंदी को इस तरह से क्रमिक रूप से बढ़ावा दिया जाए कि

  • कार्यों में कोई रुकावट न आए,
  • और अंग्रेज़ी की जगह धीरे-धीरे हिंदी ले सके।
    👉 किसी भी असुविधा को दूर करने के लिए उचित उपाय किए जाएँ।
    👉 हिंदी का विकास सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों को समाहित करते हुए हो,
    और इसमें सरल, सुबोध शब्दों का प्रयोग किया जाए।

✨ निष्कर्ष:

प्रथम राजभाषा आयोग और राजभाषा संसदीय समिति, दोनों ही हिंदी के संवैधानिक विकास में मील का पत्थर रहे।
इन्हीं की बदौलत राजभाषा हिंदी को आगे बढ़ाने की एक संगठित, संतुलित और व्यावहारिक नीति बनी, जो आज भी सरकारी तंत्र में हिंदी की उपस्थिति को सशक्त बनाती है।

Scroll to Top